|| श्री सीतारामाभ्यां नमः ||

|| श्री सीतारामाभ्यां नमः ||

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श्री हनुमान गढ़ी

अयोध्या जी

जय श्री राम

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संक्षिप्त इतिहास

श्री हनुमानगढ़ी मन्दिर , श्री अयोध्या धाम में स्थित है | श्री हनुमान जी का यह स्थान लगभग 10वीं शताब्दी से है जहाँ श्री हनुमानजी अयोध्या के राजा के रूप में विराजमान हैं | श्री हनुमान जी की ऐसी अनुपम मूर्ति विश्व के किसी मन्दिर में नहीं है जैसी श्री हनुमानगढ़ी में है | विश्व के कोने कोने से श्रद्धालु गण यहाँ आ कर श्री हनुमान जी के दर्शन करते हैं | मंगलवार तथा शनिवार को विशेष ही जनसमूह दर्शन हेतु आता है | मन्दिर जाने के लिए कुल 76 सीढ़ियां चढ़नी होती है |

मान्यता है कि जब रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद भगवान राम अयोध्या लौटे, तो हनुमानजी यहां रहने लगे। इसीलिए इसका नाम हनुमानगढ़ या हनुमान कोट रखा गया। यहीं से हनुमानजी रामकोट की रक्षा करते थे। मुख्य मंदिर में, पवनसुत माता अंजनी की गोद में बैठते हैं।

संचालित सेवाएं
गोशाला , अन्नक्षेत्र , समाजसेवा , कीर्तन
इत्यादि

श्री हनुमानजी का चरित्र

विश्व में भक्ति या भक्त की उपमा ही श्री हनुमानजी से ही दी जाती है क्यूंकि इनके जैसा न भक्त हुआ न होगा | 

विश्व में भक्ति या भक्त की उपमा ही श्री हनुमानजी से ही दी जाती है क्यूंकि इनके जैसा न भक्त हुआ न होगा | श्रीरामचन्द्र के अनन्यभक्त , अष्ट सिद्धियों और नौव निधियों के स्वामी , महाबली , वीर , श्री हनुमानजी का चरित्र का हम मनुष्य क्या ही व्याख्या का पाएंगे | श्री हनुमानजी के शरण में आने के बाद ही मनुष्य इनका स्वरुप , चरित्र इत्यादि जान पायेगा | आप लोगो की सुविधा हेतु कुछ पठन सामग्री लिंक की गयी है जिसे आप पाठकगण डाउनलोड कर सकते हैं और कभी भी , कहीं भी श्री हनुमान जी का सुमिरन , मानसिक ध्यान इत्यादि कर सकते हैं |

इस पवित्र भारतभूमिपर जन्म-प्राप्त प्रत्येक धर्माभिमानी व्यक्ति श्रीमद्रामायणको अवश्य जानता है, साथ ही वह उसके प्रतिपाद्य मर्यादापुरुषोत्तम श्रीरामकी जीवनी भी न्यूनाधिकरूपसे जानता ही है। यह पवित्र ग्रन्थ हमारा मार्गदर्शक है। श्रीरामजीकी जीवनी हमारे लिये आदर्श है। हमारे सारे उत्तम संस्कार और आचरणोंपर रामायणका प्रभाव है ही। हमारी माताएँ बचपनमें ही हमें श्रीराम-कथा सुनाती हैं। कीर्तनमण्डलियाँ भी श्रीरामजीके भजन गाकर लोगोंको आनन्द-सागरमें निमग्र कर देती हैं। कथावाचक भी श्रीरामकथा कहते-सुनाते हुए अपने एवं सभी श्रोताओंके जीवन-स्तरको ऊँचा करने-करानेके प्रयत्में सफल होते हैं। एक ही रामायणमें माता-पिता, पति-पत्नी, पिता-पुत्र, सहोदर-बन्धु, राजा-प्रजा एवं स्वामी-सेवक–इन सबको अपने एवं दूसरोंके प्रति कर्तव्यताके लिये जो कुछ सीखना होता है, मिल जाता है। यद्यपि श्रीगमायणके प्रधान नायक मर्यादापुरुषोत्तम भगवान्‌ श्रीराम ही हैं, तथापि इसमें सुन्दरकाण्डसे आगे तो श्रीरामभक्त हनुमानजीकी ही जीवनी–चरित्रचित्रण अधिक विस्तारसे देखनेको मिलता है। रामायणमें कुल सात काण्ड हैं। उसके चौथे किष्किन्धाकाण्डके आरम्भमें ही श्रीहनुमानजी आते हैं। वहाँपर उनके गुणोंका अच्छा परिचय मिलता है।

श्रीरामचन्द्रजी स्वयं कहते हैं–

नानृग्वेदविनीतस्य नायजुर्वेदधारिणः।
नासामवेदविदुषः शक्यमेवं प्रभाषितुम्॥
नूनं व्याकरणं कृत्स्नमनेन विधिना श्रुतम्।
बहुव्याहरताऽनेन न किञ्चिदपशब्दितम्॥

ऋग्वेद, यजुर्वेद एवं सामवेदकी शिक्षा पाये बिना कोई भी व्यक्ति इस प्रकार वार्तालाप नहीं कर सकता-इतनी श्रेष्ठ सम्भाषणकुशलता नहीं प्राप्त कर सकता। तात्पर्य यह कि श्रीहनुमानजी समस्त विद्याओंमें पारंगत हैं। इस प्रकार किष्किन्धाकाण्डसे लेकर युद्धकाण्डके अन्तमें वर्णित श्रीरामचन्द्रजीके पट्टाभिषेकतक प्राय: प्रत्येक प्रकरणमें श्रीहनुमानजी प्रधानरूपसे विराजते हैं। इनकी कथाके बिना रामायण अधूरी ही रह जाती। इनको हम श्रीरुद्रका अवतार मानते हैं और ‘रुद्रमूर्तये नमः ‘ कहकर इनकी पूजा भी करते हैं। इनके स्मरणसे बुद्धि, बल, यश, धीरता, निर्भयता, आरोग्य, सुदृढ़ता और वाक्पटुता भी प्राप्त होती है-

बुद्धिबल यशो थैर्य निर्भयत्वमरोगता। सुदाढ्य॑ वाक्स्फुरत्वं च हनुमत्स्मरणाद्‌ भवेत्‌॥ (आनन्दरा० मनोहर० १३। १६)

श्री हनुमानजी त्रिकाल-स्मरण

 

श्रीहनुमानजीके अत्यन्त श्रद्धालु उपासकोंको चाहिये कि वे तीनों काल श्रीहनुमानजीका स्मरण – ध्यान करें । किंतु यदि ऐसा सम्भव न हो तो प्रातः या सायंकाल ही त्रैकालिक ध्यान पूजन एक साथ भी कर सकते हैं। ध्यानके श्लोक भावार्थसहित यहाँ दिये जा रहे हैं-

( १ )
प्रातः स्मरामि हनुमन्तमनन्तवीर्यं श्रीरामचन्द्रचरणाम्बुजचञ्चरीकम् । लङ्कापुरीदहननन्दितदेववृन्दं सर्वार्थसिद्धिसदनं प्रथितप्रभावम् ॥

जो श्रीरामचन्द्रजीके चरण-कमलोंके भ्रमर हैं, जिन्होंने लंकापुरीको दग्ध करके देवगणको आनन्द प्रदान किया है, जो सम्पूर्ण अर्थ – सिद्धियोंके आगार और लोकविश्रुत प्रभावशाली हैं, उन अनन्त पराक्रमशाली हनुमानजीका मैं प्रातः काल स्मरण करता हूँ ।

( २ )
माध्यं नमामि वृजिनार्णवतारणैकाधारं शरण्यमुदितानुपमप्रभावम् ।
सीताऽऽधिसिन्धुपरिशोषणकर्मदक्षं वन्दारुकल्पतरुमव्ययमाञ्जनेयम्॥

जो भवसागरसे उद्धार करनेके एकमात्र साधन और शरणागतके पालक हैं, जिनका अनुपम प्रभाव लोकविख्यात है, जो सीताजीकी मानसिक पीड़ारूपी सिन्धुके शोषण कार्यमें परम प्रवीण और वन्दना करनेवालोंके लिये कल्पवृक्ष हैं, उन अविनाशी अञ्जनानन्दन हनुमानजीको मैं मध्याह्नकालमें प्रणाम करता हूँ ।

( ३ )
सायं भजामि शरणोपसृताखिलार्तिपुञ्जप्रणाशनविधौ प्रथितप्रतापम् ।
अक्षान्तकं सकलराक्षसवंशधूमकेतुं प्रमोदितविदेहसुतं दयालुम् ॥

शरणागतोंके सम्पूर्ण दुःखसमूहका विनाश करनेमें जिनका प्रताप लोक- प्रसिद्ध है, जो अक्षकुमारका वध करनेवाले और समस्त राक्षसवंशके लिये धूमकेतु ( अग्नि अथवा केतु ग्रहके तुल्य संहारक ) हैं एवं जिन्होंने विदेहनन्दिनी सीताजीको आनन्द प्रदान किया है, उन दयालु हनुमानजीका मैं सायंकाल भजन करता हूँ ।

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